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    धनबाद : IIT-ISM का चौंकाने वाला खुलासा, ग्लेशियर के लगातार पिघलने से मीठे पानी का स्त्रोत होगा कम

    Dhanbad : दुनिया के सबसे बड़े और सबसे ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में हिंदुकुश हिमालय और तिब्बत का क्षेत्र आता है. यह बड़े बड़े ग्लेशियर और बर्फ का क्षेत्र है. भारत और आसपास के देशों में मीठे पानी का यह स्रोत है. यह सिकुड़ रहा है. ग्लेशियर के लगातार पिघलने के कारण आने वाले दिनों में मीठे पानी का जल स्रोत कम हो जायेगा. नदियों में पानी कम होगा. मतलब भविष्य में पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ सकती है. आईआईटी-आईएसएम अप्लायड जियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद और संस्थान के स्टूडेंट्स हिमालय के ग्लेशियर पिघलने को लेकर रिसर्च कर रहे हैं. रिसर्च की जो रिपोर्ट है, वह काफी चिंताजनक हैं.

    बड़ी तेजी से पिघल रहा ग्लेशियर

    हिमालय के मध्य और पूर्वी इलाके वाले ग्लेशियर बड़ी तेजी के साथ पिघल रहे हैं. पिछले 20 सालों में ग्लेशियर पिघल कर कम हो गए हैं. यही हाल रहा हो तो आने वाले 75 सालों में यह 25 फीसदी कम हो सकता है. अगर इस तरह से ग्लेशियर पिघलेंगे तो इसका असर नदियों के जलस्तर पर पड़ेगा. शुरू में तो नदियों का जलस्तर तेजी के साथ बढ़ेगा, लेकिन धीरे-धीरे यह कम होता चला जायेगा. यह चिंता का विषय है. अगर ऐसे ही ग्लेशियर पिघलता रहा तो कई सालों बाद यहां सिर्फ पत्थर के पहाड़ रह जाएंगे.

    सेटेलाइट डेटा से खुलासा 

    साल 1975 के करीब से सेटेलाइट डेटा मिल रहा है. प्रतिदिन या हर 15 दिन पर यह डेटा हमे मिलता है. उसमें यह साफ नजर आता है कि कुछ ग्लेशियर को छोड़कर, लगभग सभी ग्लेशियर तेजी से पिछल रहे हैं. इसे रोकने के सबसे बड़ा उपाय यह है कि कोल और पेट्रोलियम के ऊपर निर्भरता को कम किया जाय. विंड एनर्जी और सोलर एनर्जी पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है, ताकि क्लिक एनर्जी के जरिए दुनिया के वातावरण क्लीन हो और तापमान बढ़े नहीं. वैश्विक गर्मी अगर कम होगी तभी बर्फ का पिघलना रूकेगा. उसका फायदा भी हमे मिलेगा. समतली क्षेत्र में रहने वाली 60 से 70 करोड़ की जनता, जिनका जीवन मीठे पानी के स्रोत पर निर्भर करती है, उन्हें पानी के लिए जद्दोजहद नहीं करना पड़ेगा.

    तापमान कम होगा तो बर्फ का पिघलना कम होगा

    प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद ने कहा कि हिमालय से निकलने वाली पांच प्रमुख नदियां गंगा, ब्रह्मपुत्र, इंडस समेत अन्य नदियां और चाइना की तरफ निकलने वाली कई नदियां हैं. यह सभी नदियां मीठे जल का बहुत बड़ा स्रोत हैं. इनका जल स्तर स्थिर रखना है तो वैश्विक तापमान को कम करना जरूरी है. तापमान को नियंत्रण में रखने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, कार्बन और सल्फर को कम करना पड़ेगा. इसे कम करने के लिए क्लीन कोल इस्तेमाल करना पड़ेगा. पेट्रोलियम में भी सल्फर और कार्बन कम करना जरूरी है. साल 1850 से 1910 तक अमेरिका में तेजी से उद्योगों का विकास हुआ. इंडिया में साल 1975 से तेजी के साथ औद्योगिकरण हुआ. एनटीपीसी कोयला से बिजली बनाने का काम 1975 से कर रहा है. इसके बाद इंडिया में पावर का कंजप्शन बहुत तेजी से बढ़ा है. कोल का प्रोडक्शन भी वन बिलियन टन तक बढ़ चुका है. साल 2030 तक डेढ़ बिलियन टन कोयले का उत्पादन होने का अनुमान है. औद्योगिकरण के लिए कोल जरूरी है लेकिन क्लीन कोल पर जोर देने की जरूरत है.

    वन क्षेत्र बढ़ाने की जरूरत

    पेरिस क्लब एग्रीमेंट में यह तय हुआ था कि सभी देश अपने फॉरेस्ट कवर को बढ़ाएंगे. भारत ने कमिटमेंट किया है कि एक निश्चित मात्रा में फॉरेस्ट कवर को बढ़ाएंगे. हाइवे के बगल में पेड़ लगाए जाने हैं ताकि पेड़ कार्बन डाइक्साइड को सोख सके. इससे सीधे गर्मी भी कम होगा. यह एक बहुत बड़ा उपाय है, जो सभी देशों को करने की जरूरत है. हमारे देश में कई बेकार भूमि पड़े हुए हैं. वैसे इलाकों में व्यापक स्तर पर पेड़ लगाने की जरूरत है. मानसून के साथ-साथ यह ग्लेशियर कवर करने में मदद मिलेगी.

    सभी देश अपने-अपने क्षेत्र की ग्लेशियर का कर रहे मैपिंग

    यूनैप और बड़ी सारी संस्थाओं ने एक एक ग्लेशियर को मैप करना शुरू कर दिया है. सिर्फ हिमालय या तिब्बत की ग्लेशियर क्षेत्रों की मैपिंग नहीं हो रही है, बल्कि विश्व के सभी देश अपने-अपने क्षेत्र की ग्लेशियर की मैपिंग और मार्किंग करने में जुटे हुए हैं. सिर्फ भारत में ही ग्लेशियर कम नहीं हो रहे हैं. विश्व स्तर पर ग्लेशियर कम हो रहें हैं, जिसका असर उन देशों की नदियों पर पड़ेगा. उनका जलस्तर कम होगा. नॉर्थन केलिफोर्निया में भी ग्लेशियर तेजी के साथ पिघल रहा है, जिसके कारण नदियों में पानी आना कम हो रहा है.

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